कड़वा
सच !
1. सर्जिकल स्ट्राइक का ढिंढोरा टेलीविज़न
पर अभी तक पीटा जा रहा है और सत्ताधारी पार्टी सेना के इस बहादुरी का राजनैतिक लाभ
लेने की पूरी कोशिश कर रही है। सरकार जहाँ खुद को शाबाशी देते नही थक रही वहीँ कुछ
चैनल जो सत्ताधारी पक्ष के लिए काम करते है, वो प्रधानमंत्री को
ऊँचा दिखाने का हर संभव प्रयास कर रहे है। बीते सालों में देशभक्ति विषय पर काफी
चर्चाएं होती आ रही है। सोशियल मीडीया पर सरकार के पक्ष विपक्ष मे अनेक पोस्ट जारी
हो रही है पर क्या किसी ने सर्जिकल स्ट्राइक करने वाले सच्चे सिपाही की व्यथा सुनी
है की उसका कल क्या है ?
2. आज जो लोग वीर सैनिको की गाथा गा रहे है
कल उसी वीर सेनिक का सेवा निवृति पच्छात किसी होटल या ATM के बाहर सरकार की
उपेक्षित नीतियो के कारण गार्ड की नोकरी करने को विवच होना पड़ेगा ! यहा तक की
सूबेदार और सूबेदार मेजर जिनके नाम का कभी रेजिमेंट मे डंका बजता था और उनके बिना
पत्ता भी नही हिलता था वो भी आज के हालात मे साइकल के पीछे दरी डालकर रात
को 7000/- रुपये मे गार्ड की नोकरी करने को
मजबूर है ! वो आज मजबूर है, लेकिन जब सेवा मे था वही
बॉर्डर पर गोली खाने और सर्जिकल स्ट्राइक मे भी वही जाता था! आज वो मजबूर है क्यो की सेवा
शर्तो के कारण वो फोज से पहले
निकाल दिए जाते है .
3. जिसने अपनी पूरी जवानी देश के लिए न्योछावर कर दी आज उसको अपने बुडापे
मे जीवन यापन और सम्मान के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है ! रिटायरमेंट के बाद
भूतपूर्वक सैनिको का कोटा जनरल अभ्यर्थी को दे दिया जाता है कही नियमानुसार चयन नही है ! कोई भी
विभाग जिन पर जिन पर भूतपूर्व सेनिको के नियोजन का दायित्व
है, वे अपना दायित्व बिल्कुल नही निभा रहे है इसी का
फ़ायदा सरकारी विभाग उठा रहे है, सैनिक की रिटायरमेंट के बाद कमर वैसे ही टुट जाती है और वो कोर्ट
कचहरी से दूर रहता है ! सीने
पर लगे घाव तो फौजी शायद खुद ही भर लेता लेकिन देश के लिए मर मिटने वाला फौजी
परिवार के पेट पर किये गए वार को नहीं सह पाया और आज इस घाव को भरने के लिए उस
फौजी को भी कोर्ट जाना पड़ता है, कभी रैलियां करनी पड़ती हैं, कभी
जंतर मंतर पर भूख हड़ताल करनी पड़ती है,
कभी साईकिल मार्च तो कभी बाइक मार्च
करनी पड़ती है पर उसके दर्द इलाज हो ही नहीं पा रहा ! क्यों ? क्योंकि जिनके पास इलाज कि दवा है, घाव
भी उन्हों ने ही दे रखा है !
4. आज सशस्त्र बलो मे एक वर्ग वो भी भरती हो रहा
है जिनका उद्देश्य मात्र भूतपूर्व सैनिको के वर्ग मे आरक्षण पाने के लिए 15 वर्ष
की अनिवार्य सेवा करके अपनी इच्छानुसार सेवा मुक्त होकर सिविल सरकारी नोकरी आरक्षण के आधार पर पाना है, उनके
मुक़ाबले सेना का वो जवान जिसको सेना द्वारा सेवा शर्तो के कारण 15-20 वर्षो के दोरान निकाल दिए जाते है, वो
उनके मुक़ाबले मे टिक नही पाते है !
5. अब तो आरक्षण की नीति पर
पुर्नविचार करने की ज़रूरत है क्यो की जो सिर्फ़ आरक्षण का लाभ लेने के लिए ही सशस्त्र
बलो मे भर्ती होकर स्वेच्छा से सेवा निवृति लेते है उनको आरक्षण का लाभ देना
न्यायोचित नही है, और यही हाल रहा तो वो दिन दूर नही जब थल
सेना, वायु सेना और जल सेना मे बलो की संख्या के
अनुपात मे आरक्षण का लाभ का पुर्न बटवारा हो! आकड़ो के अनुसार थल सेना के जवानो को संख्या के
अनुपात मे केवल 23% आरक्षण का लाभ
मिल रहा है जबकि वायु सेना और जल सेना को 77% लाभ मिल रहा है !
6. अब समय आ गया है की हम अपने गिरेबान मे जाख कर देखे
की एक सैनिक ने देश को क्या दिया और हम उसे क्या दे रहे है ? क्या वो सेवा निवृति पच्छात ATM के
गार्ड लायक रह गया है ? अगर
हा तो उसके ज़िम्मेदार कौन है ?
Disclaimer - उपरोक्तलिखित कथन और चित्रो का उद्देस्य किसी भी वर्ग की भावनाओ को ढ़ेश पहुचाना नही बल्कि सैनिको की और हो रही उपेक्षाओ को और ध्यान दिलाना है ! फिर भी किशी वर्ग को ढ़ेश पहुचती है तो तो लेखक क्षमा प्रार्थी है !)
सिपाही की व्यथा सुनी है की उसका कल क्या है ?
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